भगवान वाल्मीकि उत्सव कमेटी पंजाब के प्रधान, वाल्मीकि वेल्फेयर ट्रस्ट के चेयरमैन एवं भारतीय जनता पार्टी के एस.सी.मोर्चा पंजाब के उप.प्रधान विपन सभरवाल ने प्रेस को जारी किए बयान में सुप्रीमकोर्ट में चल रहे पंजाब सरकार, वाल्मीकि मज़हबी सिख समाज vs स दबिंदर सिंह पंजाब, प्रधान परमजीत सिंह कैंथ दा चमार महा सभा,स.लक्षमन सिंह की और से सुप्रीमकोर्ट में 2010 से चलते आ रहे 12.5% आरक्षाण के केस के बारे में सुप्रीमकोर्ट के 7 जाजो की बैंच में से 6 जाजो ने केस वाल्मीकि मजबी सिखो के हक में सुना दिया।जिससे वाल्मीकि मजबी सिख समाज में खुशी की लहर है।
विपन सभरवाल ने विस्तार से बताया की 12.5% आरक्षण मजहबी सिख और बाल्मीकि समुदाय को आरक्षण का मामला? 1966 से पहले पंजाब राज्य (हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और चंडीगढ़ सहित) में अनुसूचित जाति को 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता था।1966 में पंजाब के विभाजन के बाद, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के अलग होने के बाद, वर्तमान पंजाब राज्य में अनुसूचित जातियों की संख्या 1971 की जनगणना में 26 प्रतिशत हो गई,जिसके साथ सरकार ने जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व किया। अनुसूचित जाति का आरक्षण 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया जाएगा। पंजाब राज्य अनुसूचित जातियों में शामिल कुछ एक या दो विशेष जातियाँ सरकारी पदों पर भर्ती के 25% पर लगभग एकाधिकार रखती हैं,और पंजाब राज्य के भीतर बड़ी आबादी जिसमें प्रमुख जातियाँ मज़हबी सिख और बाल्मीकि हैं,उनका हिस्सा है।
यह बराबरी का नहीं था और उन्होंने इसका पुरजोर विरोध किया, इसलिए सरकार ने भगत गुरांदास समिति का गठन किया।समिति ने निम्नलिखित सिफारिशें कीं। अनुसूचित जाति के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण को दो भागों में विभाजित किया जाना चाहिए।12.5% धार्मिक सिख और बाल्मीकि समुदाय 12.5% प्रतिशत रविदासिया एवं अन्य समुदाय यह आरक्षण सीधी भर्ती और शिक्षण संस्थानों में लागू होगा और प्रमोशन में ग्रेड I और ग्रेड II को 14%, मजहबी सिख और बाल्मीकि समुदाय को 7% और रविदासिया और अन्य समुदाय को 7% देना टियर 3 और टियर 4 को 20%,मजहबी सिख और बाल्मीकि समुदाय को 10% और रविदासिया और अन्य समुदाय को 10% देना जिसके बाद पंजाब सरकार के एक परिपत्र सामाजिक न्याय विभाग, पंजाब सरकार जिसे नंबर1818 एसडब्ल्यू-75/10451,दिनांक05- 05- 1975 पत्र केवल सीधी भर्ती के माध्यम से यह मांग की गई थी.स्वीकृत और सीधी भर्ती नहीं की गई अनुसूचित जाति के लिए कुल 25% आरक्षण में से मजहबी सिख और बाल्मीकि समुदाय को12.5% आरक्षण दिया गया।
इसके बाद रविदासिया और अन्य समुदायों ने इसका विरोध किया और 1975 से 2006 तक कई बार इस सर्कुलर को रद्द करने की कोशिश की लेकिन हर बार सफल नहीं होते, 2006 में पंजाब सरकार इस संबंध में पंजाब विधानसभा में एक एक्ट लेकर आई,जिसे नाम दिया गया।पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में प्रतिनिधित्व) अधिनियम 2006 जिसके अनुच्छेद 4(5) में धार्मिक सिख और बाल्मीकि समुदायों को प्राथमिकता देते हुए सीधी भर्ती के माध्यम से अनुसूचित जाति के लिए कुल 25% आरक्षण में से 12.5%आरक्षण का प्रावधान है।
जिसके बाद रविदासिया और अन्य समुदाय इस अधिनियम की धारा 4(5) के खिलाफ माननीय पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय गए। जहां माननीय उच्च न्यायालय ई.वी.चन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश या अन्य फैसले दिनांक 29-03-2010 के संदर्भ में इस आरक्षण को मजहबी सिख और बाल्मीकि समुदाय के विपरीत बताते हुए असंवैधानिक करार दिया गया।
जिसके बाद मजहबी सिख और वाल्मीकि समुदाय माननीय उच्च न्यायालय के फैसले को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और उस समय देश के सबसे बड़े वकील के रूप में जाने जाने वाले वकील हरीश साल्वे ने मजहबी सिख की पैरवी की और बाल्मीकि समुदाय जिसने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के बाद पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दीऔर मामले की सुनवाई माननीय सर्वोच्च न्यायालय में शुरू हुई। दिनांक 20-08- 2014 इस मामले पर तीन जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा विचार किया गया और उनके द्वारा इस मामले को पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ को भेजने की सिफारिश की गई।
दिनांक 27-08- 2020 को पांच जजों की संवैधानिक पीठ द्वारा ई.वी. चन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य का मामला,जो पांच जजों के फैसले पर आधारित था,7 जजों या उससे अधिक की नयायपीठ ही इस पर फैसला दे सकते थे।दिनांक 01 अगस्त 2024 को वालमीकि व मजहबी सिख के पक्ष में सर्वोच्च न्यालय ने अपनी मोहर लगा दी। जिससे वाल्मीकि मजबी सिख समुदाये में खुशी की लहार है।
वही दूसरी और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहिन मायाबती, आजाद समाज पार्टी के सांसद चन्द्र शेखर रावण,भारतीय मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता बामण मेश्राम सुप्रीमकोर्ट के फैसले का विरोघ कर रहे है।अगस्त को देश व्यापी बंद की काल दे दी है जिसे वाल्मीकि मजबी सिख समाज कतई वर्दाश्त नही करेगा।इस अवसर पर जातिन्दर निक्का, चेतन हांडा,अशोक भील, गुलजार खोसला,अजु सभरवाल,मन्नी सोंधी,लक्की मनाली,अभी सभरवाल आदि शामिल हुए।